देश में आवश्यक वस्तुओं की बढती दरों की रोकथाम एवं चरमराती शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था को केंद्र सरकार एंव राज्य सरकार मजबूत करे: केंद्रीय मानवाधिकार संगठन नई दिल्ली
भंडारा: (डॉ. देवानंद नंदगावळी)
देश मे कोरोणा के बढते प्रादुर्भाव के बावजुद भी जीवनावश्यक वस्तुओं की किमती बहुत तेजी से बढ रही है। शिक्षा एंव स्वास्थ्य व्यवस्था का स्तर बहोत कमजोर हुआ है। डीजल, गैस सिलेंडर, खाद्य तेल, जीवनावश्यक आवश्यक वस्तुओं और कृषि के लिए रासायनिक उर्वरकों की बढ़ती दरों के कारण किसान, मजदूर एंव सर्वसामान्य जनता का जिना दुर्भर हो गया है। जीवनावश्यक वस्तुओं की किमती कम करने एंव शिक्षा का स्तर और स्वास्थ व्यवस्था को केंद्र सरकार एंव राज्य सरकारने मजबुत बनाने हेतु आज केंद्रीय मानवाधिकार संगठन नई दिल्ली, जिल्हा शाखा भंडारा की ओर से मान. जिल्हाधिकारी साहेब भंडारा के मार्फत मान. महामहिम राष्ट्रपती महोदय एंव मान. प्रधानमंत्री महोदय को निवेदन सौंपा गया।
भारत देश में फरवरी 2019 से कोरोना वायरस का प्रकोप तेजी से बढ़ रहा है। कोरोना-19 के बढ़ते प्रादुर्भाव को देखते हुए केंद्र सरकार व राज्य सरकार ने मार्च – 2019 से देश में धारा-144 लगाकर पुरा देश लॉकडाउन कर दिया था। देश के सभी लोगों ने सरकार द्वारा समय-समय पर दिए गए निर्देशों का ईमानदारी और सच्चाई से पालन किया। देश के प्रधानमंत्री ने दिये निर्देशानुसार जनता ने कभी थाली बजाई, कभी ताली बजाई, कभी दिये जलाये। लेकिन देश के प्रधानमंत्री महोदय के बतायें अंधविश्वास से भी बढते कोरोना प्रादुर्भाव पर कोई असर नही पडा बल्की कोरोना बढता गया। देश कि स्वास्थ्य व्यवस्था कमजोर होने के कारण कईं लोगों की अपनी जान गवांनी पडी। लॉकडाउन ने आम जनता को रोजगार से वंचित कराकर जनता कि रीढ़ तोड़ दी।
कोरोणा -19 के कहर से कई परिवार तबाह हो गए है। माता-पिता कोरोणा से मर जाने के कारण कई बच्चे अनाथ हो गये। फरवरी 2019 में ही केंद्र सरकार और राज्य सरकार को कोरोना के प्रकोप बढने की संभावना की खबर लग चुकी थी। सरकारने वक्त पर अगर उचित कदम उठाये होते तो आज देश की हालत ऐसी नही होती। सिर्फ लॉक डाउन करने से कोरोना को रोका नही जा सकता था। इतना लंबा समय मिलने के बावजूद भी न तो केंद्र सरकार और न ही राज्य सरकार ने कोरोना के प्रकोप से पैदा हुई स्थिति से निपटने के लिए कोई कदम उठाया। साल भर के अंदर कईं अस्पतालोंका निर्माण किया जा सकता था। स्वास्थ व्यवस्था को सुदृढ कर सकते थे। लेकिन सरकारने ईस ओर कोई ध्यान नही दिया।
वर्तमान सरकार के मान. मंत्रीगण कोरोना दुष्प्रभावीत मरीजोको अच्छे स्वास्थ्य सुविधा मुहय्या कराने की बजाय बंगाल चुनाव प्रचार में मशगुल थे। समय पर स्वास्थ्य व्यवस्था चरमराने के कारण कोरोणा प्रभावितों को बचाने के लिए डॉक्टर और परिवार के सदस्यों मे हड़कंप मच गया। देश में अस्पतालों की नगण्य संख्या और अस्पतालोमें स्वास्थ्य सामग्री जैसे की बेड, दवाईयां, ऑक्सिजन, व्हेंटिलेटर, ब्लड बैंक मे ब्लड, प्लाज्मा, डॉक्टर और नर्सेस की पर्याप्त व्यवस्था न होने के कारण कई मरीजों को अस्पतालोमें ही अपनी जान गंवानी पडी।
भारत सरकार और राज्य सरकार की अधिकतम राशी शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधा पर खर्च की जानी चाहिए थी। लेकिन देश मे ऐसा नहीं हो रहा है। नतीजतन, देश की शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई है। बिगड़ती स्वास्थ्य व्यवस्था के चलते कई मरीजों को इलाज के अभाव में अपनी जान गंवानी पड़ी।
पेट्रोल, डीजल, गैस सिलेंडर, खाद्य तेल, जिवनावश्यक वस्तुओं और रासायनिक उर्वरकों की बढती आसमान छूती किमतों के कारण किसान, मजदूर और आम जनता का उत्पिड़न हो रहा है। नतीजतन गरीबोंका जीना हराम हो गया है। यह गहरा सवाल उठता है कि, किसान, खेतिहर मजदूर, हाथमजदूर, फेरीवाले और आम जनता कैसे जिएं।
सालभर से लॉकडाऊन के कारण ग्रामीण इलाकों में किसानों, खेतिहर मजदूरों और हात मजदूरों की रोजी-रोटी से वंचित हो जाने के कारण अपनी रोजी रोटी के लिए संघर्ष कर रहे है। उधर आसमान छूती महंगाई के कारण जीवन की बुनियादी जरूरतें पुरी करना आम जनता को कठिण हो गया है। पूरे साल महंगाई बढ़ती ही जा रही है। महंगाई की वजह से पैदा हुई सामाजिक अशांति को देखते हुए सरकार को चाहिए कि वह गरीबों को रोजी – रोटी की व्यवस्था मुहैया कराने की अपनी जिम्मेदारी निभायें। खाद्य तेल की कीमतों में वृद्धि के साथ सब्जियों, दालों और अन्य आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि हुई है। आम गरीब के सामने दुविधा है कि अब कैसे जिएं। भोजन, शिक्षा और स्वास्थ्य की बढ़ती लागत से आम जनता चिंतित है। आज हर गरीब परिवारोंके लिए कुछ भी सस्ता नहीं है। आम गृहिणी को इस सवाल का सामना करना पड़ता है कि घर के खर्चों का प्रबंधन कैसे किया जाए। आम आदमी इस दुविधा में फंस गया है कि खाने पीने मे किस चिज की कैसे, कहां, कब और कितनी कटौती करे। बच्चो की दूध की प्यास बुझाने के लिए पाणी का इस्तेमाल करा कर दिन गुजारने पड़ते हैं। महंगाई कितनी भी बढ़ जाए, इंसान को दिन में दो वक्त का खाना, बीमारी की दवा आदि आधी को जुटाने के लिए तो खर्च करना ही पड़ता है।
माननीय महोदय आपसे नम्र निवेदन है की, आम आदमी की समझ से परे की कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण केंद्र सरकार और राज्य सरकारों में बैठे मंत्रियों द्वारा वित्तीय व्यवस्था को नियंत्रित करने और मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाने के लिए किए गए अत्याधिक खर्च पर अंकुश लगाकर देश के लोगों को राहत दें। जीवनावश्यक वस्तूओंकी किमतें घटाएं। यदि केंद्र और राज्य सरकारें इन गंभीर मुद्दों को गंभीरता से नहीं लेती हैं और समय पर उचित कदम नही उठाती है तो बढती महंगाई के कारण भुकमरी से मौत की संभावना कोरोणा से ही ज्यादा होकर अकाल होने की संभावना नकारी नही जा सकती।
निवेदन देते वक्त डॉ. देवानंद नंदागवळी (प्रभारी महाराष्ट्र राज्य), महेंद्र तिरपुडे (विदर्भ सचिव), सामाजिक कार्यकर्ते मंगेश हुमने, सूर्यकांत हुमणे, अचल मेश्राम, हरिश्चन्द धांडे, विजय नंदागवळी, अंकित रामटेके आदि की उपस्थिती थी।