संत चोखामेळा वसतीगृह चंद्रपूर के कार्याध्यक्ष हसमुख स्वभाव के साधुजी जनार्धन दहिवले का दुःखद निधन

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चंद्रपुर :- मूल तहसील के चिरोली गांव में जन्मे साधु जनार्धन दहीवले आज हमारे बीच नही है।
मगर इनकी यादे हमेशा जिंदा रहेगी
बचपन मे इनके परिवार में सभी लोग खेती, महेनत मजदूरी कर अपना गुजरा करते थे
मगर स्वयं ओर अपने छोटे भाई के साथ उन्हे पढ़ाई के लिए चंद्रपुर शहर आना पड़ा ओर संत गुरुजी के संत चोखामेळा वसतिगृह चंद्रपूर मे रहकर पढ़ाई करके जीवन मे कुछ नया करने की उनकी मंशा पुरी हुई वो हमेशा ग्रमीण स्तर के बच्चों का पढ़ाई के लिए प्रेरित करते थे। मगर
कूच सालों बाद जीस वसतिगृह मे विद्यार्थी के तौर पर रहे वही पर उन्हें अधीक्षक के तौर पर कुछ साल काम करना पड़ा
उसके बाद कोषागार कार्यालय चंद्रपूर मे इन्हे सरकारी नौकरी मिली अती हसमुख एवं सुंदर छवी के करण वो वरिष्ठ पदों पर नेकीं और इमानदारी के साथ कार्यरत रहे।
उन्ही के पथ पर चलने वाले उनके छोटे भाई प्रल्हाद जनार्धन दहिवले इन्हे भी स्वास्थ विभाग मे नौकरी मिली दोनो भाई मिलकर पूरा एकल परिवार नागिनाबाग वेटरनरी हॉस्पिटल के सामने मोडक इनके चाल में रहने लगा ।
अपने बड़े भाइयों के बच्चों को अच्छी शिक्षा देकर उनका विवाह कर सरकारी नौकरी करने तक प्रेरित किया
मगर जहा से उनकी शुरुवात हुई थी वो चोखामेळा वसतिगृह को उन्होंने हमेशा बढ़चढ़कर सहयोग किया संत गुरुजी के विचारों को हमेशा संजोके रखा ।
कई बच्चों को शिक्षा के लिए प्रेरत किया ओर उनका उजव्वल भविष्य बने उन्हें नौकरी मिले जिससे उनका भविष्य उज्जवल बने वहां तक उन्हें हर चाहे मदत पोहचाई ।
नेकी ओर ईमानदारी के साथ काम करते हुए कोषागार कार्यालय से सेवानिवृत्त होने के बाद भी वह चोखामेळा वसतिगृह के कार्याध्यक्ष रहे साथ ही काई सामाजिक क्षेत्र मे अपना अतुलनीय योगदान दिया कई निर्धन परिवार को मदत पोहचाई।

उनके जन्म स्थल के पास ही बेंबाळ, केळझर ऐसे गांवों में स्कूल को सुरू करणे तक शैक्षणिक संस्थान के सक्रिय सदस्य रहे।
दोनों भाई चाहते थे की अनके परिवार का कोई वारीस ऊन संस्थान मे सदस्य रहे ऐसी उनकी मनही मंशा थी,
सदा हसमुख एवं सभी घरपरिवार के लोगों संभालकर चलने वाले साधुजी जनार्धन दहीवले उम्र के 80 साल मे ही हम सब को छोड़ इस दुनिया से चले गए ।
मगर उनकी यादे ,उन्होंने दिए संस्कार हमेशा हमारे बीच जिंदा रहेंगे मैं केन्द्रीय मानवाधिकार संगठन,नई दिल्ली एवं वृत्तपत्र समूह परिवार की ओर से मेरे बड़े पिता बुध्दवासी साधुजी जनार्धन दहीवले इन्हें भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करता है।

आप की कमी हमारे परिवार को हमेशा रहेगी मगर आपकी यादे हमारे बीच हमेशा जिंदा है।
आपका बेटा……..
डॉ मिलिंद प्रल्हाद दहीवले
संपादक-दैनिक केन्द्रीय मानवाधिकार हिन्दी समाचारपत्र

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