छत्तीसगढ़ सरकार ने धान की खेती का 9 लाख हैक्टेयर किया रकबा कम

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सरकार ने धान की खेती का 9 लाख हेक्टेयर किया रकबा कम
रायपुर। छत्तीसगढ़ सरकार ने अगले साल खरीफ सीजन के लिए अपना प्लान घोषित कर दिया है। इसमें सरकार ने अचानक धान की खेती का रकबा 9 लाख हेक्टेयर कम कर दिया है। मतलब इस 9 लाख हेक्टेयर की जमीन पर लगा धान सरकार समर्थन मूल्य पर नहीं खरीदेगी। कृषि विभाग द्वारा तैयार खरीफ प्लान के तहत इस साल 37 लाख हेक्टेयर में धान की फसल लेने की योजना है। हालांकि, विभाग ने धान से इतर दलहन, तिलहन और दूसरी अन्य फसलों जैसे कोदो, कुटकी लेने की भी योजना बनाई है। राज्य सरकार ने भी दूसरी फसलों की खेती को बढ़ावा देने का निर्णय लिया है। इसके तहत सरकार ने धान से इतर दूसरी फसल और वृक्षारोपण करने वालों के लिए दस हजार रुपए प्रति एकड़ देने का फैसला किया है। सरकार ने धान के रकबे में लगभग 5 फीसदी कमी करने का लक्ष्य तय किया है। उसका मानना है कि इससे किसान दूसरी फसलों की आकर्षित होंगे।

इस तरह कम किया गया रकबा

पिछले साल 21 लाख 52 हजार किसानों ने धान की खेती के लिए पंजीयन कराया था। जिसमें से 20 लाख 53 हजार किसानों ने धान की फसल समर्थन मूल्य पर सरकार को बेची थी। सरकार ने पिछले साल करीब 40 लाख हेक्टेयर में उगाया गया 92 लाख टन धान खरीदा था। अब सरकार इस रकबे में 9 लाख हेक्टेयर की कमी कर रही है। सीधे तौर पर धान की फसल के लिए 37 लाख हेक्टेयर का रकबा तय कर दिया गया है और दूसरी फसलों का रकबा 6 लाख हेक्टेयर बढ़ा दिया गया है। जैसे पिछले साल करीब 2 लाख हेक्टेयर में तिलहन की फसलें ली गई थीं। उसे अब इस साल बढ़ा कर 2 लाख 55 हजार हेक्टेयर कर दिया है। इसी तरह दलहनी फसलों का रकबा भी पिछले साल की तुलना में 20 फीसदी बढ़ा दिया गया। ऐसे ही मक्का व दूसरी फसलों के साथ कर सरकार ने 9 लाख हेक्टेयर कम कर दिया।

सवाल जो किसानों के सामने खड़े हैं

सरकार के फसल चक्र परिवर्तन प्लान का सीधा विरोध नहीं है, लेकिन सभी किसानों का कहना है कि यदि सरकार उन्हें किसी दूसरी फसल के लिए प्रोत्साहित करना चाहती है तो उसे तैयारी करनी चाहिए थी। छत्तीसगढ़ के किसान धान की पारंपरिक खेती ही जानते हैं। वे पीढ़ियों से यह खेती करते आ रहे हैं और सरकारों को समर्थन मूल्य पर बेचते आ रहे हैं। यहां इसी तरह उनकी अर्थ व्यवस्था चल रही है। किसानों का कहना है कि यह ठीक है कि सरकार धान छोड़कर पेड़ लगाने के लिए, दलहन-तिलहन, कोदो-कुटकी की खेती के लिए अनुदान, समर्थन मूल्य दे रही है, लेकिन यह तो हमें आता ही नहीं। पहले सरकार हमें प्रशिक्षण देती, तकनीकी बातें समझाती, बीज, देखभाल, खाद, दवा की जानकारी देती तो हम तैयार रहते। अब अचानक रकबा कम करने से हम क्या इस साल खेत खाली छोड़ दें।

राज्य सरकार पर पैसे बचाने का भी आरोप

एक वर्ग ऐसा भी है जो धान की खेती का रकबा कम करने को सरकार की नीयत से जोड़ रहा है। उसका कहना है कि सरकार ऐसा सिर्फ इसलिए कर रही है कि उसे 9 लाख हेक्टेयर में उगाए गए धान पर बोनस की राशि जिसे शासन राजीव गांधी किसान योजना के तहत देती है ना देना पड़े। पिछले साल शासन ने किसानों को 5 हजार 700 करोड़ रुपए इसके तहत दिए थे। अब इस साल 9 लाख हेक्टेयर कम करने से सरकार के 2 हजार करोड़ रुपए बचेंगे। पेड़ लगाने के लिए 10 रुपए एकड़ जो राशि दी जाएगी, वह अगले साल दी जानी है और यह भी नहीं मालूम कि कितने किसान पेड़ लगाने पर राजी होंगे।

किसान नेता भी कहते हैं कि देर से लिया गया निर्णय

भाजपा शासन में कृषि मंत्री रहे चंद्रशेखर साहू कहते हैं कि फसल चक्र परिवर्तन की योजना, किसानों को वृक्षारोपण, नगद फसलों के लिए प्रोत्साहित करना ठीक है लेकिन इसकी पूरी प्लानिंग होनी थी। फार्म प्लान बनना था, कि किसानों को बताया जाए, सिखाया जाए। रातों-रात 9 लाख हेक्टेयर खेत का धान नहीं खरीदने की घोषणा सरकार की अरदूर्शिता और किसानों के प्रति असंवेदना बताती है।

प्रदेश के बड़े किसान नेता और विशेषज्ञ संकेत ठाकुर कहते हैं कि यह योजना सही है, लेकिन किसानों को यह भी बताना चाहिए कि वो धान के बदले जो फसल लेंगे उसका मार्केट कहां है। सरकार उसे उगाने, खरीदने में क्या मदद करेगी। फसल परिवर्तित करने से मिट्टी की सेहत सुधरती है। प्रदेश में दूसरी फसलों का रकबा कम होना चिंताजनक है।

कृषि मंत्री कहते हैं

प्रदेश के कृषि मंत्री रविन्द्र चौबे कहते हैं कि धान के बदले अन्य फसल लेने से खरीफ के रकबे में वृद्धि होगी। धान का रकबा 3 लाख हेक्टेयर कम करने की हमारी योजना है। हम दलहन, तिलहन की अन्य फसलों को प्रोत्साहित करेंगे इसलिए खरीफ का रकबा उतना ही रहेगा। किसानों को पौधारोपण के लिए 10 हजार रुपए अनुदान दिया जा रहा है। अपने लगाए पेड़ काटने के नियमों में भी किसानों के हित में बदलाव किया गया है। दूसरी फसलें राज्य में हो, कैश क्राप हो यह किसानों की आर्थिक स्थिति के लिए अच्छा है।

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